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विंध्याचल की नालियां आज भी खुली है और दूर दराज से आने वाले दर्धनार्थियो को नालियों की बदबू से परेशान होना पड़ता है। यही नहीं सुनने में आ रहा है कि जिस दुकानदार ने पत्थर ढकने का बीस बीस रुपया दिया उसके

विंध्याचल की नालियां आज भी खुली है और दूर दराज से आने वाले दर्धनार्थियो को नालियों की बदबू से परेशान होना पड़ता है। यही नहीं सुनने में आ रहा है कि जिस दुकानदार ने पत्थर ढकने का बीस बीस रुपया दिया उसके दुकान के सामने का नाली ढका गया और जिसने नहीं दिया उसके सामने का नाली खुला ही छोड़ दिया गया।

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