हम काफिरों के भी कुछ अधिकार है
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कल संसद में एक विशेष समुदाय के सांसद के लिए निंदनीय शब्दों का प्रयोग हुआ और पूरा देश उबल पड़ा, लेकिन यह मोहब्बत की दुकानें केवल एक विशेष समुदाय के लिए क्यों?
इस देश में हम काफिरों के भी कुछ अधिकार होने चाहिए कि नहीं?
तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार। यहां मैं एक बहुत शालीन नारे का उल्लेख कर रहा हूं। हमारी पीढ़ियां इससे बहुत ही अश्लील संबोधन और नारे सुन सुनकर बड़ी हुई हैं। दाऊद इब्राहिम जैसों से पालित पोषित मीडिया और बॉलीवुड ने लगातार हमारी ऐसी की तैसी कर रखी। लेकिन मैंने कभी सुना नहीं कि इस देश में इस प्रवृत्ति के खिलाफ कोई आवाज उठी हो।
आज दक्षिण भारत में 40 साल छोटी गोद ली हुई बेटी से शादी करने वाले द्वारा स्थापित दल का एक नेता हमें कीड़े मकोड़े की तरह और वायरस की तरह खत्म करने का आंदोलन चला रहा है और सारे राजनीतिक नेताओं के मुंह पर पट्टी लगी हुई है। शायद जर्मनी के यहूदियों की तरह गैस चैंबरों में मारने की किसी योजना पर सब काम कर रहे हो?
दो-चार दिन पहले कनाडा से भाग जाने का हुक्म जारी हुआ है। हम काफिर कहां जाएं? किससे कहें? इजरायल की तरह अपना देश बनाने का कभी सोचा नहीं। क्या धर्मांतरण ही एकमात्र मार्ग बचा है?
फिल्टर न्यूज़
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