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सोनिया गांधी: सत्ता यात्रा और अप्राकृतिक संयोगों का रहस्य

सोनिया गांधी: सत्ता यात्रा और अप्राकृतिक संयोगों का रहस्य

भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी की यात्रा रहस्यमय घटनाओं और अप्राकृतिक संयोगों से भरी रही है। कांग्रेस के गांधी परिवार में, सोनिया गांधी के आगमन के बाद से जुड़े घटनाक्रम कई प्रश्न खड़े करते हैं। सत्ता की इस यात्रा में सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने से पहले और बाद में अप्राकृतिक मृत्यु और रहस्यमयी दुर्घटनाओं का सिलसिला जारी रहा, जिससे सोनिया गांधी को राजनीतिक और पारिवारिक रूप से लाभ हुआ।

गांधी परिवार की रहस्यमयी घटनाएँ

•संजय गांधी: इंदिरा गांधी के पुत्र और राजीव गांधी के छोटे भाई, जिनकी आकस्मिक मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हुई।
•इंदिरा गांधी: अपने ही अंगरक्षकों द्वारा गोली मार दी गईं। उन्हें तत्काल अस्पताल न ले जाने का निर्णय उनके जीवन का अंत साबित हुआ।
•राजीव गांधी: 1991 में एक आत्मघाती बम हमले में उनकी हत्या हुई।
•राजेंद्र वाड्रा: प्रियंका गांधी के ससुर, जो दिल्ली के एक गेस्ट हाउस में मृत पाए गए। इसे आत्महत्या घोषित किया गया।
•रिचर्ड वाड्रा: प्रियंका गांधी के देवर, जो मुरादाबाद में मृत पाए गए। उनकी ईसाई धर्म के विपरीत, शव का अंतिम संस्कार किया गया।
•मिशेल वाड्रा: प्रियंका गांधी की ननद, जिनकी मृत्यु जयपुर-दिल्ली हाईवे पर एक कार दुर्घटना में हुई।

राजनीतिक दावेदारों की रहस्यमयी मृत्यु

•राजेश पायलट: कांग्रेस के उभरते हुए नेता, जिनकी मौत एक सड़क दुर्घटना में हुई।
•माधवराव सिंधिया: कांग्रेस के कद्दावर नेता, जिनकी मृत्यु विमान दुर्घटना में हुई।

इन घटनाओं से स्पष्ट है कि सोनिया गांधी के सत्ता में उभरने का मार्ग इन अप्राकृतिक मौतों और दुर्घटनाओं से होकर गुजरा।

सोनिया गांधी का अतीत: रहस्यमय प्रारंभ

•सोनिया गांधी का जन्म 1946 में हुआ। उनके पिता स्टेफानो माइनो, इटली के फासीवादी नेता मुसोलिनी के समर्थक, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत रूस की कैद में थे। यह सवाल खड़ा करता है कि उनके जन्म प्रमाणपत्र में स्टेफानो का नाम कैसे दर्ज हुआ।
•उन्होंने 13 साल की उम्र में इंग्लैंड में पढ़ाई शुरू की और एक वेट्रेस के रूप में काम करते हुए राजीव गांधी से मिलीं। 1968 में वे राजीव गांधी से विवाह कर भारत के प्रधानमंत्री निवास में प्रवेश कर गईं।

सत्ता के दौरान वामपंथ और चर्च का प्रभाव

सोनिया गांधी के भारत आगमन के बाद:
•भारतीय शासन तंत्र और शिक्षा प्रणाली में वामपंथी विचारधारा का गहरा प्रभाव पड़ा।
•देश में कैथोलिक चर्च द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण को बढ़ावा दिया गया।
•2004 से 2014 तक, उन्होंने अलोकतांत्रिक तरीकों से भारत पर शासन किया। इस दौरान:
1.भारत की संपत्ति का भारी शोषण हुआ।
2.देश को कमजोर करने वाली नीतियां बनाई गईं।

क्या यह सब केवल संयोग है?

इन सभी घटनाओं का एकमात्र लाभार्थी सोनिया गांधी रही हैं।
•गांधी परिवार की अप्राकृतिक मौतों ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचाया।
•कांग्रेस के आंतरिक दावेदारों की रहस्यमयी मृत्यु ने उनके रास्ते से प्रतिस्पर्धा हटा दी।
•सोनिया गांधी के नेतृत्व में, भारत का राष्ट्रीय चरित्र कमजोर हुआ और विदेशी प्रभाव बढ़ा।

विष कन्या और सत्ता की राजनीति

इतिहास में ‘विष कन्या’ का उल्लेख एक ऐसी स्त्री के रूप में होता है, जो अपने स्वामियों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दूसरों का विनाश करती है। क्या सोनिया गांधी की राजनीतिक यात्रा भी इसी कथा का आधुनिक रूप है?
•उनके आगमन के बाद से गांधी परिवार और कांग्रेस में सत्ता के समीकरण बदल गए।
•भारतीय संस्कृति और विचारधारा पर विदेशी प्रभाव बढ़ा।

हमारी जिम्मेदारी

•भारत के इतिहास और राजनीति की इन घटनाओं पर सवाल उठाना हमारा कर्तव्य है।
•इन अप्राकृतिक संयोगों की जांच क्यों नहीं हुई?
•मीडिया और कांग्रेस इन मुद्दों पर चुप क्यों हैं?

सत्ता की यह यात्रा महज संयोग नहीं, बल्कि योजनाबद्ध षड्यंत्र प्रतीत होती है।
अब समय आ गया है कि भारतीय जनता इन रहस्यमयी घटनाओं का विश्लेषण करे और सच को उजागर करे।

“जय हिंद, जय भारत।

........................... बांग्लादेश मे तख्तापलट होता है, सीरिया मे विरोधी उग्र हो गए, पाकिस्तान मे अचानक से नरसंहार शुरू हुआ, साउथ कोरिया मे सैन्य शासन लग गया, भारत मे किसानों की आड़ मे बिना बात अचानक आंदोलन होने लगे। ये सच मे सिर्फ संयोग है??? ये हो ही नहीं सकता, चिन्मय दास जी चार महीने से विरोध कर रहे थे मगर गिरफ्तार अब हुए। एक माहौल बनाया जा रहा है कि भारत बस किसी भी तरह बांग्लादेश पर हमला कर दे? जब तक डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति नहीं बनते कुछ ना कुछ आकस्मिक होता रहेगा। ये समय हमारे धैर्य का है, चिन्मय दास तो कुछ नहीं है इन दो महीनो मे बांग्लादेश के हिन्दुओ के साथ बहुत कुछ होगा। जो विपक्ष चार महीने से मुँह मे दही जमाये बैठा था वो अब अचानक हिन्दुओ के लिये आवाज़ उठा रहा है। एक कोशिश है बस कि भारत युद्ध छेड़ दे, और ये युद्ध अभी हुआ तो इस युद्ध का कोई परिणाम भी नहीं आएगा क्योंकि जो अन्य युद्ध चल रहे है वे भी बस चल रहे है। गलवान वैली के बाद एक बात जो समझ आयी वो ये कि भारतीयों का माइंडसेट युद्ध वाला नहीं है। गलवान वैली देखा जाए तो भारत की विजय हुई थी मगर हमारे 20 सैनिको की वीरगति का जिस तरह विधवा आलाप करके अपमान किया गया वो दर्शाता है कि हम मन से मजबूत नहीं है। बांग्लादेश से लड़ोगे तो तैयार रहो 500-1000 तो इस तरफ भी मारे जाएंगे। मीडिया उनकी विधवाओ की तस्वीरे दिखायेगा सोशल मीडिया पर क्या सेक्युलर क्या हिंदूवादी सब आंसू बहाकर सेना और सरकार का मोरल डाउन करेंगे और फिर मोदी सरकार को हटाने के लिये एक सत्ता विरोधी आंदोलन होगा। यदि किसी को ये बस थ्योरी लग रही हो तो फ्रेंच और रशियन क्रांति को डिटेल मे पढ़ लो ये ही सब उस समय भी हुआ था। जब विपक्ष कमजोर होता है तो राजा को युद्ध मे उलझाकर तख्तापलट किया जाता है। बांग्लादेश को आप आसानी से हरा दोगे लेकिन मन की लड़ाई हार जाओगे क्योंकि फिलिस्तीन मे 50 हजार के मरने पर भी वो मौत से नहीं डर रहे और आपने 5 हजार के मरते ही आंसू बहाने शुरू कर दिए और अपनी सरकार को कोसना भी। बांग्लादेश मे जो हो रहा है वो बस उकसाने वाली बात है कि बस किसी तरह भारत आक्रमण कर दे और 2-3 सालो के लिये नए भूराजनैतिक समीकरण मे उलझ जाए। सरकार ये समझ गयी है, जनता का भी एक वर्ग समझ गया है मगर कुछ अपवाद है जिन्हे युद्ध चाहिए। उन्हें लग रहा है कि युद्ध 1 बजे शुरू होगा और 2 बजे तक बांग्लादेश के सारे हिन्दू भारत मे आ चुके होंगे। बांग्लादेश शमशान बन जाएगा और भारत का ना कोई सैनिक और ना कोई नागरिक मरेगा। भारत के शहरो पर कोई गोला नहीं गिरेगा और बस रामायण वाली स्टाइल मे धर्म की पताका लहरा रही होंगी। इन लोगो के लिये राजनीति एक गली मोहल्ले के झगड़े बराबर है, युद्ध तो निश्चित होगा। भारत ने पिछले एक महीने मे ही कुछ सैन्य परिक्षण भी किये है, चीन से तो अभी लड़ना नहीं है, पाकिस्तान भी नहीं तो संभव है युद्ध बांग्लादेश से हो। युद्ध से विरोध नहीं है मगर युद्ध तैयारियो, अवलोकनो और अपने समय के हिसाब से होना चाहिए ना कि दुश्मन के एजेंडे मे फसकर और उसके उकसावे मे आकर। यदि बांग्लादेश से युद्ध करना है तो अभी 6 महीने और लो, शेख हसीना के कुछ लोग होंगे जो अंडरग्राउंड होंगे और ख़ुफ़िया जानकारी देंगे। कौन सी मिसाइल किस क्षेत्र के लिये उपयुक्त रहेगी, उसकी गणना होंगी। यदि राजशाही पर रासायनिक बम गिरा दिया तो 40 किमी दूर ही भारत के गाँव है वे भी झूलस जाएंगे। ऐसी और ना जाने कितनी ही गणना है जिनमे समय लगता है और इसे करके ही युद्ध हमारे फेवर मे होगा। इन चिल्लम चिल्लाई और उकसावे मे युद्ध की मांग करने वालो के कहने मे आकर दिमाग़ को पर्दा करने की आवश्यकता नहीं। हर काम समय के साथ ही होता है, जल्दबाजी मे बस तराइन और पानीपत जैसे हाल होते है

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