बहराइच, जिले के ग्राम पंचायत लक्ष्मनपुर मटेही गांव निवासी 17 वर्षीय किशोरी की उसके पिता ने बांके से निर्मम हत्या कर सिर धड़ से अगल कर दिया। इसके बाद वह शव के पास ही बैठा रहा। सूचना पाकर मौके पर पहुंची पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। पिता को मौके से गिरफ्तार कर लिया है।
बहराइच जिले के मोतीपुर थाना क्षेत्र से एक सनसनी खेज वारदात सामने आई है। जहां एक एक पिता ने अपनी बेटी को अपने ही घर के बाहर दरवाजे के पास उसका सिर काट के उसकी बेहरमी से हत्या कर दी है, और सिर को वहीं रख दिया है। मोतीपुर थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत लक्ष्मनपुर मटेही गांव निवासी खुशबु (17) पुत्री नईम खान का प्रेम प्रसंग इसी थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत रायबोझा गांव निवासी एक युवक से चल रहा है। जिसका विरोध पिता कर रहा था। लेकिन पुत्री नहीं मानी।
.............. मीरजापुर छानबे क्षेत्र ग्राम पंचायत भटेवरा में नेखपाल, राजस्व निरीक्षक, नायब तहसीलदार, अष्टभुजा चौकी प्रभारी के द्वारा निरीक्षण किया गया मौके पर 15 फीट के रोड में करंजे को उखाड़ कर चबुतरा व सीढ़ी नया निर्माण किया गया था और रास्ते से अधिक्रमण अभी तक नहीं हटाया गया और ग्रामीणों का कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा जांच कराकर अतिक्रमण को हटाया जाए
......... ब्रेकिंग न्यूज़ मिर्जापुर जनपद मीरजापुर थाना पड़री के क्षेत्रा अंतर्गत 02/09/2024 साम 8 बजें रामकुमार मौर्य राजस्व निरीक्षक चुनार तहसील से आटो से उतरकर घर जाते समय मोहन पहाड़ी, कनौरा रोड पर अग्यात मोटरसाइकिल सवार उचको ने मोबाइल सेट हाथ से छिन कर रेलवे लाइन पुल की तरफ अंधेरा का फायदा उठाते हुए फरार हो गए और मोबाइल छिनैयती का मोहनपुर पहाड़ी पर मचा आतंक
...... बांग्लादेश सरकार का पतन मात्र एक घटना नहीं बल्कि भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र के लिए एक चेतावनी है कि राष्ट्रवादी शक्तियां यदि एकजुट न हुईं तो देश जहन्नुम में जाना तय है। पहले तो ये जान लें कि अमेरिका किसी भी राष्ट्रवादी सरकार को रहने नहीं देना चाहता बल्कि वो कठपुतली सरकारें चाहता है जो अपनी नीतियां राष्ट्रहित में नहीं बल्कि अमेरिकी हित में बनाएं। जो देश अमेरिका की नहीं सुनता उस देश के विपक्ष को वो खरीद लेता है और देश में झूठे विमर्श(Narrative) गढ़कर अराजकता फैलाने का कुचक्र रचता है। जो देश अमेरिका के निशाने पर होता है वहां वो सीधे नहीं तो ढेर से एनजीओ को, मीडिया को, राजनीतिक दलों को पैसे देकर सरकार विरोधी वातावरण तैयार करता है। अमेरिका ने बांग्लादेश से अपने सैनिक अड्डे के लिए जगह मांगी, शेख हसीना ने अस्वीकार कर दिया। परिणाम आपके सामने है कि छात्रों के आन्दोलन की आड़ में देश को आग में झोंक दिया गया और जिस बांग्लादेश की अर्थ व्यवस्था बहुत ही मजबूत थी वो एक महीने भी नहीं बीता कि विश्व बेंक सहित कितनी ही संस्थाओं से कर्ज मांगने लगा है। अमेरिका की भूमिका बांग्लादेश सरकार के पतन में इसलिए भी सिद्ध है कि लोकतन्त्र और मानवाधिकारों की रक्षा का अपने को झंडाबरदार कहने वाला अमेरिका बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के उत्पीड़न पर चुप है। चुप रहे क्यों न जबकि ये सब उसी का किया धराया आज भी है 1975 में भी था जब शेख मुजीब की हत्या हुई थी। हत्या तो शेख हसीना की भी होती किंतु मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलता थी कि खतरे को समय से पहचान लिया और अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए शेख हसीना को सकुशल निकाल लिया और अमेरिका को ठेंगे पर रखते हुए हसीना को पूरी ठसक के साथ देश में शरण भी दे रखा है। कर्ज मांगने के पीछे का एक कारण तो मोदी की रणनीति है। हुआ ये बांग्लादेश को बहुत अधिक बिजली भारत से जाती है, जब तक हसीना थीं तब तक तो उधार विजली देने में कोई समस्या नहीं थी किंतु अब तो उधार देना खतरे से खाली नहीं है और मोदी ने बिजली कंपनियों से मात्र इतना कह दिया कि यदि बांग्लादेश में पैसे फंसने की संभावना हो तो अपनी बिजली भारत के किसी अन्य ग्रिड को दे सकते हैं। बस मोदी सरकार का इतना कहना था कि बिजली कंपनियों के कान खड़े हो गए और उन सबने बांग्लादेश को चेतावनी दे डाली कि बिजली चाहिए तो पैसे अग्रिम दो वरना आपूर्ति बंद। भारत सरकार की चेतावनी का ही असर था कि बंगलादेश सरकार का प्रमुख वहां के हिंदुओं का विश्वास जीतने के लिए मंदिर तक गया और संकेत दिया कि वो भारत से सम्बंध नहीं बिगाड़ना चाहता। मोदी सरकार विदेशी चुनौतियों से निपट लेती है किन्तु नाक में दम किए रहते हैं विदेशी पैसे पर पलने वाले राहुल जैसे राजनीतिक लोग जो देश में अराजकता फैलाने के लिए किसानों की अनुचित मांगों तक का समर्थन जोर शोर से करते हैं किंतु अपनी सरकार में इन्होंने किसानों के हित में क्या किए इसको बता सकने की स्थिति में नहीं हैं। मेरा तो ये मानना है कि ये काम भी देशद्रोह का ही है कि सत्ता में आने के लिए ऐसे बड़े बड़े वादे कर दो जिनका पूरा होना असम्भव सा हो। हमारे सामने हिमाचल प्रदेश एक उदाहरण है जहां सुक्खू की कांग्रेस सरकार अपने आधे अधूरे चुनावी वादे पूरे करने में ही इतना दिवालिया हो गई है कि वेतन देने तक का बजट नहीं है और सभी चुनावी वादे कैसे पूरे होंगे भगवान ही जानें। देश का सौभाग्य था कि इंडी गठबन्धन सत्ता में नहीं आया वरना राहुल के खटाखट वादे को पूरा करने में ही लगभग 30 लाख करोड़ रूपये प्रति वर्ष खर्च होते जबकि देश का पूरा बजट ही लगभग 27 लाख करोड़ का होता है। ये अलग बात है कि बड़े बड़े वादों के साथ ही विपक्ष ने संविधान बदलने और मोदी सरकार द्वारा आरक्षण समाप्त कर देने का झूठा भय दिखाकर मोदी को कुछ कमजोर करने में तो सफलता तो पाया किंतु मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने से रोक नहीं सका। मेरे लेख में कोई अतिशयोक्ति लगे तो कोई भी तथ्य के साथ अपने विचार दे सकता है किंतु ध्यान रहे देश की कीमत पर किसी भी आंदोलन के आगे आत्मसमर्पण करना पूरे देश के लिए भयावह होगा। समय की मांग है कि प्रगति के पथ पर बढ़ रहे राष्ट्र के आगे बाधा बन रही देशद्रोही शक्तियों को पहचानें और चुप न बैठें बल्कि आगे आएं।........... वंदे मातरम्..... भारत माता की जय
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