Sanju Manthan

धर्म और रिलीजन ््््््््््

धर्म और रिलीजन ््््््््््

भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही रहा की 1947 के बाद धर्म और रिलीजन को एक कर दिया गया और एक नया शब्द गढ़ा गया जिसको धर्मनिरपेक्षता का जाता है
धर्म की परिभाषा धारण करना सत्य अहिंसा क्षमा दान उपकार धारण करना भारतीय ग्रंथों के अनुसार धर्म के 10 लक्षण बताए गए हैं
दुर्भाग्य से सत्ता हस्तांतरण के पश्चात ऐसे हाथों में शासन आया जो वैचारिक रूप से पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित थे भारतीय मूल्य भारतीय सभ्यता से दूरी बनाए रखना उनके लिए सत्ता प्राप्त करने का साधन बना है सारे साधन अपनाए गए जिससे प्राचीनता की उपलब्धि गर्व की अनुभूति भारतीय होने की अनुभूति से दूर किया जा सके
रिलीजन या मजहब का कोई संस्थापक होता है कोई होली बुक होती है जिसमें उस मजहब या रिलिजन को पालन करने वालों को बुक्स के नियमों को पालन करना पड़ता है उसकी अनिवार्यता रहती है बुक्स के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता जो उस नियमों का पालन नहीं करेगा उसे मजहब या रिलीजन से बाहर माना जाता है उन नियमों में परिवर्तन की संभावना नहीं होती जब कि परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है
पूरी दुनिया में धर्म सिर्फ एक है रिलीजन अथवा मजहब अनेक है धर्म में आवश्यकतानुसार संशोधन परिवर्तन किए जाते रहे हैं भारत की मूल आत्मा वेद है भारतीय संस्कृति सभ्यता प्रकृति के सास्वत नियम को मानता है क्योंकि प्रतिक्षण परिवर्तन होते हैं चूंकि हमेशा से परंपराओं में परिवर्तन जटिल रहा है क्योंकि मानव आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन को सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पाता यह उसका स्वभाव बन जाता है लेकिन परिवर्तन नेचर का शाश्वत नियम है 
लेकिन भारतीय राजनीति ने रिलीजन में धर्म का विलय कर दिया जिसका भुगतान भारत कर रहा है
पंथ निरपेक्ष भारत का लोकतंत्र है लोकतांत्रिक व्यवस्था है लेकिन पंथ और धर्म दोनों एक नहीं है धर्म जीवन जीने की एक वैज्ञानिक व्यवस्था है समय अनुकूल परिवर्तन की सुविधा है लेकिन पंथ में परिवर्तन किसी भी हालत में स्वीकार नहीं है धर्म एक प्रवाहित जलधारा है और रिलीजन में प्रवाह का नियम ही नहीं है सबसे बड़ा यही अंतर है
भारत का प्राचीनतम संस्कृति सभ्यता गौरवशाली इतिहास रहा है जिसको मिटाने का निरंतर प्रयास किया जाता रहा आश्चर्य यह है कि हजारों वर्षों के प्रयास के बाद भी भारत भारतीयता अभी तक जीवित है जबकि इस अस्तित्व को मिटाने का निरंतर प्रयास चलता रहा है यह प्रक्रिया हजारों वर्षों से चल रही है अनगिनत विकृतियों के कारण भारत प्रभावित हुआ लेकिन अभी तक धर्म के कारण भारत का अस्तित्व बना हुआ है आने वाला समय भारत का ही है क्योंकि हमारा मूल मंत्र है वसुधैव कुटुंबकम अब इसमें पात्र और सुपात्र का चयन करना भारत का दायित्व है इंसानों के साथ इंसानियत हिंसक जानवरों के साथ मानव नियम नहीं अपनाए जा सकते असंतुलित अशांत विश्व को भारत ही मार्ग प्रशस्त कर सकता है क्योंकि उसका धरोहर धर्म है इसलिए प्रत्येक भारतीय का दायित्व है कि वह धर्म और पंथ में क्या अंतर है इसको समझने का प्रयास करें

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