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क्या विपक्ष सिर्फ विभाजन कारी नीति के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता 

क्या विपक्ष सिर्फ विभाजन कारी नीति के अतिरिक्त कुछ नहीं जानता 
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स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम संप्रदाय और जाति की राजनीति से शुरुआत हुई तुष्टिकरण का प्रारंभ हुआ और बहू संख्यक समाज में विभाजन के साथ राष्ट्र ने अपना सफर प्रारंभ किया उसके लिए भारत भारतीयता सभ्यता संस्कृति के अपमानों का दौर प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे क्रमशः इस नीति का विकास हुआ जिसका परिणाम हुआ बहुसंख्यक समाज अपने आप से अपनी संस्कृति से अपने गौरवशाली अतीत से विमुख हुआ और हीन भावना से ग्रस्त हुआ स्थिति यहां तक आ गई कि उसे हिंदू करने में शर्म महसूस होने लगी
एक षड्यंत्र के तहत इस समाज को जितना अपमानित जलील उपहास किया जा सकता था किया गया सेकुलरिज्म का मतलब ही हिंदुओं को जलील करना है
लेकिन टुकड़े-टुकड़े गैंग के दुर्भाग्य से सोया हुआ समाज अंगड़ाई  लेने लगा और विभाजनकारी नीति सांप्रदायिक नीति तुष्टिकरण की नीति फेल होने लगी और 2014 में राजनीतिक परिवर्तन हुआ सोया हुआ समाज नींद से जागने लगा लेकिन डीएमके के टी राजा जैसे नेता टीएमसी के नेता अभी तक जनता के मिजाज को भांप नहीं पाए हैं इसलिए राजनीतिक विरोध करते-करते करोड़ों के आराध्य भगवान श्री राम और हिंदू धर्म का अपमान करने लगे उत्तर दक्षिण की बात करने लगे भारत कोई एक राष्ट्र नहीं था इसकी बात करने लगे 
एक कहावत है कि जब किसी पर विपत्ति आनी होती है तो सबसे पहले उसे व्यक्ति का दिमाग खराब होता है यही हाल ऐसे नेताओं का हो रहा है विनाश काले विपरीत बुद्धि ्््स्त्रियों पर अत्याचार करने वाले टीएमसी नेता शाहजहां शेख को बचाने के लिए बंगाल सरकार ने कितने नाटक किया उसको भी देश की जनता ने देखा ्््
राष्ट्र के मिजाज को ऐसे लोग महसूस नहीं कर पा रहे हो कि अब जाति की राजनीति क्षेत्र की राजनीति के भाषा की राजनीति अब नहीं चलने वाली है यह बात विपक्ष को अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए यदि राजनीति करनी है तो जन भावना के अनुसार नीति निर्धारित करनी चाहिए
 

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