Sanju Manthan

जाति और वर्ण व्यवस्था में अंतर

संजू मंथन
जाति और वर्ण व्यवस्था में अंतर
जाति व्यवस्था का जन्म कैसे हुआ ्््
सामाजिक व्यवस्था को संचालित करने के लिए कोई न कोई व्यवस्था बनाई जाती है इसी तरह भारतीय समाज में जिसका मूल स्रोत वेद है उसके अंतर्गत वैदिक काल में प्रारंभ में कुल या गोत्र की व्यवस्था थी उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का जन्म हुआ जिसमें आवश्यकता के अनुसार 4 वर्ण बनाए गए यह सामान्य जीवन की आवश्यकता है ज्ञान सुरक्षा जीवन यापन की व्यवस्था और सेवा जिसके अंतर्गत ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र चार वर्णों की व्यवस्था हुई यह वरण करना अर्थात चयन करना गुण और कर्म के आधार पर वर्ण की व्यवस्था है लेकिन एक वैज्ञानिक व्यवस्था किसी भी कारण से वह जन्म में बदल गई जिसका जन्म जिस वर्ण में हुआ है वही उसकी जाति हो गई यह प्रक्रिया उत्पन्न होने से एक अभिशाप बन गया इसका कारण मूलतः विवाह है वैवाहिक कारणों से जाति व्यवस्था का जन्म  हुआ क्योंकि सामान्यतः लोग अपने ही समूह में विवाह करना पसंद करते हैं क्योंकि यह आसान होता है उनकी संस्कृति उनका संस्कार रहन सहन खानपान समान होने के कारण विवाह अपने समूह में होने से कर्म जन्म में परिवर्तित हो गया
अपने समूह से बाहर विवाह करने से नए जातियों का जन्म हुआ जो आगे चलकर एक बहुत बड़ा अभिशाप बना मानवता पर दाग लगा और भारत को लंबे समय तक गुलामी तथा विभाजन के महत्वपूर्ण कारणों में एक कारण बना कुल मिलाकर वर्ण जहां एक वैज्ञानिक सरल व्यवस्था वही वही जन्म के आधार पर जाति व्यवस्था भारत के लिए बहुत बड़ी समस्या रही वर्तमान में मानवता के लिए एक कलंक और राजनीतिक सामाजिक समस्या के रूप में आज भी खड़ी है जिसका समाधान होना अति आवश्यक है

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