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सनातन धर्म में विवाह का महत्व एवं सामाजिक समझौते में अंतर

संजू मंथन
विवाह का मतलब क्या ्््््््
सनातन धर्म में विवाह का महत्व एवं सामाजिक समझौते में अंतर ्््् ्््््््््््् ््््््््््
सामाजिक संबंध अर्थात मैरिज एक्ट एवं निकाह की जो परिभाषा है वह विवाह का अर्थ नहीं है ना ही उसकी परिभाषा है सनातन धर्म के अनुसार विवाह मानव जीवन के जीवन चक्र के अंतर्गत धार्मिक प्रक्रिया का एक अंग है
धर्म की कोई क्रिया बिना धर्मपत्नी के पूर्ण नहीं होता सामान्य रूप से एक सनातनी तीन ऋणो को लेकर जन्म लेता है और उन ऋणों को जीवन क्रम में चुकाना पड़ता है प्रत्येक सनातनी का धर्म है कि वह   पृत ऋण से मुक्त हो उसके लिए विवाह अनिवार्य है
विवाह एक सामाजिक समझौता नहीं है यह एक यज्ञ है एक धार्मिक प्रक्रिया है धर्म का एक अंग है यह लिव इन रिलेशनशिप नहीं है
जीवन को गति देने के लिए जीवन रूपी गाड़ी के लिए दो पहियों की आवश्यकता है जीवन सामान्य नहीं है अनगिनत झंझावातों से जीवन को गुजरना पड़ता है उस जीवन को जीने के लिए एक जीवन साथी जो सुख-दुख में साथ दे उसकी अनिवार्य आवश्यकता है प्रकृति के नियम चलने के लिए जीवन की निरंतरता के लिए आवश्यक है उसके लिए संतान भी अनिवार्य है उसके लिए विवाह अनिवार्य आवश्यकता है एक गृहस्थ धर्म की शुरुआत विवाह से ही होती है जिसमें गृहस्थ धर्म का पालन किया जाता है अर्थात अर्थ धर्म काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए विवाह एक अनिवार्य धार्मिक आवश्यकता है
     वर्तमान युग में सदियों की विकृति में विवाह को एक सामाजिक समझौता लिव इन रिलेशनशिप मात्र युवक और युवती के मध्य संबंध को ही विवाह मान लिया जाता है जबकि विवाह में दो परिवारों का संबंध भी जुड़ता है रिश्तेदारों का भी संबंध जोड़ता है जो समाज के सामाजिक संबंधों की अनिवार्य आवश्यकता है
वर्तमान को आवश्यकता है की सनातन को समझे उसके महत्व को समझे तब उसे समझ में आएगा की विवाह का अर्थ क्या है परिभाषा क्या है उसका महत्व क्या है पति-पत्नी के रूप में जीवनसाथी के रूप में सभी कर्तव्यों के निर्वहन का नाम विवाह है जो प्रत्येक स्थिति परिस्थिति विषम परिस्थिति प्रत्येक उतार-चढ़ाव में साथ देना जीवनसाथी जो जीवन भर एक दूसरे का साथ देते हैं जीवन पर्यंत साथ देते हैं वह विवाह द्वारा ही संपन्न हो सकता है प्रेम का अर्थ सार्थक स्वरूप प्रेम की सच्ची अनुभूति विवाह द्वारा ही संपन्न होता है विवाह का धार्मिक सामाजिक जीवन को सार्थक स्वरूप देने का कार्य करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है यहीं जीवन की सार्थकता है
 

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